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Sunday, 29 March 2015

तेरी रहमत....!





हर सतरे* से इसके, 'तेरी'  रहमत की महक आती है,
है इक किताब जिसे, 'मेरी' ज़िंदगी मैं कहता हूँ  ~ 'देव' 

सतर* = पंक्ति 

6 comments:

  1. तेरी किस्मत का लिखा तुझसे,
    कोई ले नहीं सकता
    अगर उसकी
    रेहमत हो , तुझे वो भी
    मिल जायेगा,
    जो तेरा हो नहीं सकता I

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